Skip to main content

Posts

Showing posts from 2016

कविता

कविता लिखना किसी इंसान के बस की बात नहीं है कविता ख़ुद ही अपने आप को लिखती है इक ज़रिया है बस हम तो कविता ख़ुद ही ख़ुद को आईना में दिखती है यह ख़ुद अपनी ज़ुबां चुनती है लफ्ज़ अपने ख़ुद ही ढूँढ़ती है कोशिश कर लेना तुम कभी झूठ लिखते ही ये टूटती है देर रात यह सपने में आती मन के दरवाज़े पर दस्तक देती लिफ़ाफ़े में बंद चिट्ठी में अपने आप को तुम्हें दे जाती लिखावट काग़ज़ पर तुम्हारी है बेशक़ पर कलम में सियाही तो वो ही भर जाती कभी यूँ ही शाम को मिलने आती खिड़की के पास बैठ चाय की चुस्कियाँ लगाती रोम रोम में इक महक सी भर जाती है दिल की धड़कनें कानों तक गूँज जाती है बाहर की खिड़की खोलते खोलते यह रूह के दरवाज़े खोल जाती है एक बार कविता हर किसी को छूने आती है जब टुटा हो दिल प्यार में, तो यह कुछ ज़्यादा जी लुभाती है जब हाथ बढ़ाए तुम्हारी ओर, झट से थाम लेना, साहीर यह बार बार गले नहीं लगती है।

Take pleasure

Perfection is an obsession Give yourelf some concession Its perfectly alright to not know it all Where's thé pleasure of getting up unless you fall? There is, and will always bé compétition wherever you see Thankfully, participation is not mandatory even with no entrance fée Pick and choose your battles and fight them with all might And keep fighting until you get it right Do not confuse à momentary setback with an ultimate defeat À strategic recul is sometimes necessary to achieve thé final feat. Sing in thé shower and dance in thé bedroom Thé best moments are those that never make it to facebook Learn à new art just for thé heck of it And i ll leave thé poem unrhymed just because i feel like it.                      

अतित की ललक

आज कल किताबें बहुत मायूस रहती हैं उनकी तो अलमारी पर जमी धूल पर अब कोई उंगली से नाम भी नही लिखता . डाकघर के सामने बच्चों का ताँता लगा है अब पिताजी के साथ यहाँ चिट्ठियाँ नही ड़लती स्कूल की फील्ड ट्रिप पर आएँ हैं बच्चे भैया की शायद कोई गर्लफ़्रेंड है बटुआ खोला तो ढेर सारे क्रेडिट कार्ड मिले अब कहाँ कोई वहाँ प्रेयसी की तस्वीर छुपाता है ? सब्ज़ीवाला होम डिलीवरी के पॅकेट बना रहा है धुली , कटी , फ्रेश , प्री - पैड सब्ज़ियाँ   भींडी के छोर तोड़ कर देखनेवाली वह भाभीजी कई दिनों से नज़र नहीं आई पड़ोस के दुबेजी के यहाँ नया टीवी आया है शायद फ़ेसबुक पर अपडेट देखा आज सुबह बढ़ती हुई ' लाइक्स ' मानो हमें ठेंगा दिखा रहीं हैं आज लिखते वक़्त कुछ मज़ा नहीं आया लिखावट पहले जैसी सुंदर नही रही अब कहाँ वो रात - रात भर डायरी के पन्ने भरते हैं ? कहाँ अब वो अंगूठे से किताबों के पन्ने पलटना ? कहाँ अब वो अंगूठे से चिट्ठियों...