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Showing posts from March, 2016

अतित की ललक

आज कल किताबें बहुत मायूस रहती हैं उनकी तो अलमारी पर जमी धूल पर अब कोई उंगली से नाम भी नही लिखता . डाकघर के सामने बच्चों का ताँता लगा है अब पिताजी के साथ यहाँ चिट्ठियाँ नही ड़लती स्कूल की फील्ड ट्रिप पर आएँ हैं बच्चे भैया की शायद कोई गर्लफ़्रेंड है बटुआ खोला तो ढेर सारे क्रेडिट कार्ड मिले अब कहाँ कोई वहाँ प्रेयसी की तस्वीर छुपाता है ? सब्ज़ीवाला होम डिलीवरी के पॅकेट बना रहा है धुली , कटी , फ्रेश , प्री - पैड सब्ज़ियाँ   भींडी के छोर तोड़ कर देखनेवाली वह भाभीजी कई दिनों से नज़र नहीं आई पड़ोस के दुबेजी के यहाँ नया टीवी आया है शायद फ़ेसबुक पर अपडेट देखा आज सुबह बढ़ती हुई ' लाइक्स ' मानो हमें ठेंगा दिखा रहीं हैं आज लिखते वक़्त कुछ मज़ा नहीं आया लिखावट पहले जैसी सुंदर नही रही अब कहाँ वो रात - रात भर डायरी के पन्ने भरते हैं ? कहाँ अब वो अंगूठे से किताबों के पन्ने पलटना ? कहाँ अब वो अंगूठे से चिट्ठियों